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फातिमा सना शेख ने किया खुलासा: मिड-फ्लाइट में किया दौरे का सामना

बॉलीवुड की जानी-मानी अभिनेत्री फातिमा सना शेख (Fatima Sana Shaikh) ने हाल ही में अपनी जीवन की एक ऐसी घटना के बारे में खुलकर बताया है, जिसने न सिर्फ उनके लिए बल्कि उन सभी के लिए चेतना-उत्तेजित संदेश दिया है जो किसी प्रकार की न्यूरोलॉजिकल बीमारी से जूझ रहे हैं। यह घटना मिड-फ्लाइट, एक हवाई जहाज़ में यात्रा के दौरान हुई दौरे (seizure) की, जिसके बाद उन्होंने यह स्वीकार किया कि उन्हें एपिलेप्सी नामक बीमारी है, और इस बीमारी के साथ जीना उनके लिए एक चुनौतियाँ भरा सफर रहा है।

फातिमा सना शेख (Fatima Sana Shaikh)

नीचे हम इस लेख में यह जानेंगे कि यह किस तरह हुई, फातिमा ने कैसे सामना किया, किन कठिनाइयों से गुज़रीं, और कैसे इस अनुभव से न सिर्फ उनकी ज़िंदगी बदल गई, बल्कि इसने सार्वजनिक जागरूकता को भी एक नई दिशा दी है।

एपिलेप्सी क्या होती है?

इस कहानी को समझने के लिए पहले यह जानना ज़रूरी है कि एपिलेप्सी (Epilepsy) है क्या। यह एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है जिसमें मस्तिष्क (brain) में असामान्य इलेक्ट्रिकल गतिविधि होती है, जिसके कारण दौरे (seizures) आ सकते हैं। दौरे विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं — कभी हलके, कभी गंभीर; कभी थोड़ी देर के लिए, कभी ज़्यादा समय तक। ये दौरे चेतना की कमी, शरीर के अंगों में बेचैनी, झटके, मांसपेशियों का नियंत्रण खोना आदि लक्षण दिखा सकते हैं।

एपिलेप्सी का इलाज संभव है अगर समय पर निदान हो, दवाएँ नियमित हों, जीवनशैली संतुलित हो, और मानसिक व शारीरिक तनाव कम हो। लेकिन समाज में इसके बारे में कई मिथक, आरोप और कलंक भी जुड़े हुए हैं, जिससे लोग इसे स्वीकार करने में झिझकते हैं।

फातिमा सना शेख: एपिलेप्सी के साथ यात्रा

फातिमा सना शेख ने बताया कि यह एपिसोड एक उड़ान (flight) के दौरान हुआ, जब वह संयुक्त राज्य अमेरिका जा रही थीं, रास्ते में दुबई फ्लाइट द्वारा। एक सामान्य विमान यात्रा के दौरान अचानक उनके शरीर पर दौरे होने लगे।

उड़ान के दौरान दौरे होने के बाद उन्हें एयरपोर्ट के अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उन्हें दवाएँ दी गईं। लेकिन रिपोर्ट्स में कहा गया है कि शुरू की दवाएँ असर नहीं कर रहीं थीं, दौरे थम नहीं रहे थे। इसलिए डॉक्टरों ने उन्हें अधिक शक्तिशाली (high dose) दवाएँ दीं, जिससे उन्हें बहुत अधिक नींद‐सी स्थिति (sedation) में ले जाया गया।

फातिमा ने बताया कि उस समय उनकी हालत इतनी खराब थी कि बिस्तर से उठना भी संभव नहीं था। उनका शरीर (और मन) दोनों ही उस स्थिति से तबाह हो चुके थे, और भावनाएँ पूरी तरह से नियंत्रित नहीं थीं।

इस घटना का उनके करियर और निजी जीवन पर प्रभाव

इस घटना ने फातिमा की पेशेवर ज़िंदगी को भी प्रभावित किया। उस समय वह दो फ़िल्मों की शूटिंग कर रही थीं — एक थी Sam Bahadur और दूसरी फिल्म Dhak Dhak (रिपोर्ट्स में कहा गया है कि शायद Dhak Dhak ही वह दूसरी थी)।

मिड-फ्लाइट दौरे की वजह से उन्हें दोनों फिल्मों की शूटिंग कुछ समय के लिए रोकनी पड़ी। एक कॉल आने पर, जब उनसे पूछा गया कि क्या वह शूट कर सकती हैं, उन्होंने बताया कि वह बिस्तर से उठने में सक्षम नहीं थीं, और उन्होंने रोना भी शुरू कर दिया क्योंकि उन्हें एहसास हुआ कि अभी स्थिति ठीक नहीं है।

निजी जीवन में भी इस घटना ने उन्हें डराया, क्योंकि वह डरती थीं कि कहीं ऐसा न हो कि फिर कभी अकेले यात्रा करती समय ऐसा कुछ हो जाए।

स्वीकारोक्ति और मानसिक संघर्ष

फातिमा ने बताया कि शुरुआत में उन्होंने अपने निदान (diagnosis) को स्वीकार नहीं किया था। एपिलेप्सी के बारे में समाज में जो कलंक (stigma) है, वह उन्हें डराता था। लोगों की सोच होती है कि आपकी बीमारी कोई कमजोरी है, कि काम मिलना मुश्किल होगा, कि लोग आपको दूसरी तरह से देखेंगे।

लेकिन समय के साथ, उन्होंने यह महसूस किया कि अगर वह चुप रहेंगी, तो न सिर्फ उन्हें, बल्कि अन्य लोगों को जो इसी तरह की स्थिति से गुजर रहे हैं, उनकी आवाज़ नहीं मिलेगी। इस स्वीकारोक्ति ने उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनने में मदद की।

चिकित्सा और दवाओं से जुड़ी चुनौतियाँ

उनकी कहानी में यह बात भी सामने आई कि दवाओं के बीच बदलाव (switching medication), दवाओं की खुराक (dosage), और दवाएँ सही समय पर न लेने से स्थिति और जटिल हो सकती है। जब पहली दवा काम नहीं कर रही थी, तो डॉक्टरों ने उन्हें एक और दवा दी, लेकिन क्योंकि दवाओं की प्रतिक्रिया और दुष्प्रभाव हो सकते हैं, उन्हें विशेष सावधानी बरतनी पड़ी।

यह भी बताया गया कि नींद न पूरी होना, यात्रा (ट्रैवल) की थकान, समय क्षेत्र में बदलाव (time zone change), तनाव आदि जैसे कारक दौरे को ट्रिगर कर सकते हैं।

उड़ान यात्रा और एपिलेप्सी: क्या सुरक्षित है?

फातिमा सना शेख के इस खुलासे ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या उड़ान यात्रा उन लोगों के लिए सुरक्षित है जिन्हें एपिलेप्सी है? चिकित्सकों की राय इस विषय पर इस प्रकार है:

  • यदि स्थिति नियंत्रित हो, दवाएँ नियमित हों, डॉक्टर की निगरानी में हो, तो सामान्यतः उड़ान यात्रा की अनुमति होती है।
  • उड़ान के दौरान कुछ विशेष सावधानियाँ बरतनी चाहिए:
    1. दवाइयाँ समय पर लेना, और यदि समय क्षेत्र बदलता है, तो शेड्यूल को समायोजित करना।
    2. पर्याप्त नींद लेना।
    3. हाइड्रेशन बनाए रखना, पानी पर्याप्त मात्रा में पीना।
    4. तनाव कम से कम रखना।
    5. यात्रा के दौरान ज़रूरी दवाइयाँ हाथ में रखना, यात्रा बैग में एक अतिरिक्त दवा पैकेज होना चाहिए। भी समाहित होना चाहिए एक डॉक्टर का पत्र जिसमें निदान, वर्तमान दवाएँ, और आपात स्थिति में क्या करना है यह लिखा हो।

जागरूकता और सामाजिक दृष्टिकोण

फातिमा सना शेख के इस अनुभव ने समाज में एपिलेप्सी के प्रति जो गलत धारणाएँ हैं, उन्हें सामने लाने का काम किया है। उन्होंने कहा है कि बहुत से लोग सोचते हैं कि दौरे होने से व्यक्ति कमजोर है या काम नहीं कर पाएगा; ये विचार व्यक्ति के आत्म-सम्मान को झकझोर देते हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि बच्चों में जिनके पास कई दौरे होते हों, वे शिक्षा या स्कूलों में आने-जाने से वंचित हो सकते हैं क्योंकि लोग डरते हैं कि उनका दौरा कहीं स्कूल या सार्वजनिक स्थान पर हो जाए।

फातिमा ने समर्थन समूह (support groups), मानसिक स्वास्थ्य सलाहकारों और प्रामाणिक वार्तालापों का ज़िक्र किया है कि उन दिनों उन्होंने उनसे बहुत सहायता पाई। ये बातें मानसिक स्वास्थ्य और बीमारी स्वीकारने की प्रक्रिया को आसान बनाने में मदद करती हैं।

बदलाव और सुधार की दिशा

फातिमा का यह खुलासा सिर्फ उनकी ज़िंदगी बदलने वाला कदम नहीं है, बल्कि समाज में एक सकारात्मक बदलाव की शुरुआत हो सकती है। कुछ संभावित दिशा-बिंदु निम्न हैं:

  1. सार्वजनिक पात्रों का खुलापन
    जब प्रसिद्ध लोग अपनी कमजोरियाँ साझा करते हैं, तो आम लोग भी प्रेरित होते हैं कि वे अपनी बीमारियों या चुनौतियों को लेकर शर्म महसूस न करें।
  2. मीडिया में जागरूकता
    इस तरह की खबरों से मीडिया में सही जानकारी फैल सकती है कि एपिलेप्सी कोई डरावनी बीमारी नहीं है, बल्कि इसके साथ जीवन चल सकता है अगर सही ढंग से देखभाल हो।
  3. नीति और स्वास्थ्य सुविधाएँ
    अस्पतालों में और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों में न्यूरोलॉजिकल रोगों के लिए बेहतर संसाधन हों, विशेष रूप से दूरदराज इलाकों में, और शिक्षा संस्थानों में बीमारी के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण हो।
  4. परिवार और समाज का समर्थन
    बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा सहारा परिवार और दोस्तों से मिलता है। उनके लिए समझ और धैर्य होना चाहिए।

फातिमा सना शेख ने क्या कहा है?

उपरोक्त घटनाओं के सिलसिले में फातिमा ने कई बातें स्वयं कही हैं, जिनसे उनकी अनुभव की गहराई समझी जा सकती है:

  • जब दौरे होते थे, तो वह बिस्तर से उठ नहीं पाती थीं।
  • उन्होंने बताया कि एक कॉल आया कि शूट शुरू करना है, लेकिन वह स्थिति में नहीं थीं इसलिए रोने लगीं क्योंकि वह काम नहीं कर सकती थीं।
  • उन्होंने स्वीकार किया कि यह उनकी “बीमारी” है और इसे छुपाने से कुछ नहीं होगा; इसके बारे में बात करना ज़रूरी है।
  • उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें अब लंबे समय से कोई दौरा नहीं हुआ है, अर्थात् उनका उपचार और जीवनशैली नियंत्रण में हैं।

संदेश और प्रेरणा

फातिमा सना शेख की कहानी हमें यह सिखाती है कि:

  • स्वीकार करना पहला कदम है: बीमारी को स्वीकार करना और अपने डर, झिझक, और संदेहों से लड़ना बहुत ज़रूरी है।
  • दवाइयों और डॉक्टर की मदद लें: चिकित्सा सलाह और दवाओं का पालन करना चाहिए, क्योंकि असमय या गलत इलाज से स्थिति और बिगड़ सकती है।
  • मानसिक स्थिति भी संभालने की ज़रूरत है: आक्रोश, उदासी, शर्मिंदगी जैसे भावनाएँ आएँ, लेकिन उनसे लड़ने के लिए दोस्तों, परिवार और यदि ज़रूरी हो तो पेशेवर मनोचिकित्सक की मदद लेना जरुरी है।
  • समाज में संवाद और जागरूकता बढ़ानी चाहिए: सामान्य लोगों को इस तरह की बीमारियों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए, भेद-भाव और कलंक से लड़ना चाहिए।

निष्कर्ष

फातिमा सना शेख का “मिड-फ्लाइट में दौरे का सामना” का खुलासा सिर्फ एक घटना नहीं है; यह साहस, संघर्ष और उम्मीद की कहानी है। एक ऐसी कहानी जिसमें एक अभिनेत्री ने अपनी कमजोरी न छुपाई, बल्कि उसे स्वीकार कर उसे शिक्षा और जागरूकता का माध्यम बनाया। उनके इस अनुभव से न केवल उनकी ज़िंदगी प्रभावित हुई, बल्कि कुछ हद तक शोध, समाज और मीडिया को यह सोचने पर मजबूर किया कि एपिलेप्सी जैसी स्थिति से जूझने वालों की सहायता कैसे की जा सकती है।

उनकी कहानी एक प्रेरणा है कि चुनौतियाँ कितनी भी बड़ी क्यों न हों, अगर आपने स्वीकार किया हो, सही मदद ली हो, और उम्मीद न छोड़ी हो, तो जीवन आगे बढ़ सकता है। इस खुलासे ने यह साबित कर दिया है कि रणभूमि केवल फिल्मों की नहीं है—जीवन भी एक रणभूमि है जिसमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक लड़ाई होती है, और विजयी वही होते हैं जो हार न मानें।

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